KGF की असली कहानी: कभी भारत का 'इंग्लैंड' कहा जाता था, यहां के लोगों ने 121 साल में सबकुछ देख लिया

KGF मतलब कोलार गोल्ड फील्ड. बेंगलुरु से करीब 100 किमी की दूरी पर स्थित इस शहर की कहानी ही असली केजीएफ की कहानी है. यह एशिया का दूसरा और भारत का पहला शहर है, जहां बिजली शुरू हुई थी. यहां काम करने वाले और इलाके में रहने वालों को कोई दिक्कत न हो, इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने एक झील बनवाई. आर्टिफिशियल झील. यह आज भी मौजूद है और टूरिस्ट के आकर्षण का केंद्र है. एक समय करीब 40 हजार कर्मचारी यहां काम करते थे और उनकी फैमिली आसपास के इलाकों में रहती थी. ये वो दौर था जब बिजली-पानी की सप्लाई सबसे वीवीआईपी फैसिलीटी होती थी. KGF फिल्म आज जिस तरह करोड़ों कमा रही है, ठीक उसी तरह केजीएफ 1900 के पहले दशक में सोने का उत्पादन करता था. न्यूज 18 से बात करते हुए भूवैज्ञानिक एमएस मुनीस्वामी कहते हैं, उस समय केजीएफ से भारत का 95% सोना निकलता था और भारत सोना प्रोड्यूस करने में दुनिया में छठे स्थान पर पहुंच गया था.
इलाके में बिजली पहुंच चुकी थी. शिवनसमुद्र में बना कावेरी बिजली केंद्र से बिजली सप्लाई ऐसी होती थी कि पॉवर कट कभी होता ही नहीं था. इलाका ठंडा था तो अंग्रेजों के रहने के लिए मुफीद था. सोने से कमाई भी हो रही थी. ऐसे में यहां ‘विकास’ भी पहुंचने लगा था. ब्रिटिश इंजीनियर्स, ऑफिसर्स के साथ-साथ सोने की डील करने वाले लोगों के लिए बंगले, अस्पताल, स्कूल से लेकर क्लब तक यहां बन गए थे. बड़े-बड़े गोल्फ कोर्स थे. यहां इस तरह से ‘विकास’ हुआ कि लोग इसे भारत का ‘इंग्लैंड’ कहने लगे.लेकिन, यहां दो दुनिया थी. एक बड़े लोगों की तो दूसरी माइन में काम करने वाले भारतीय मजदूरों की. एक तो इग्लैंड जैसी थी, लेकिन दूसरे में 100-100 स्क्वॉयर फीट की कूली बनी होती थी, जिसमें मजदूर रहते थे. ऐसी 400 कूली वहां थी. उनके पास न तो प्रॉपर टॉयलेट थे और न ही सीवर लाइनें. चूहों का ऐसा आतंक कि साल भर में लोग हजारों चूहों को मारते थे. हालांकि, यहां काम करने वालों के पास एक रोजगार था. साल 2001 में वह भी छिन गया. 121 साल तक चले KGF को सरकार ने बंद कर दिया. इसके पीछे कहा गया कि खनन में आने वाला खर्च उससे होने वाली कमाई से बहुत ज्यादा है. सरकार इस बोझ को उठा नहीं पाई. फिर उस समय सोने का दाम भी गिर गया था. ऐसे में करीब 30 हजार कर्मचारियों का बोझ उठाना मुमकिन नहीं था. सरकार ने माइन को बंद कर दिया. यहां से कर्मचारियों की स्थिति और बिगड़ी. अब न तो उनके पास नौकरी बची और न ही रहने के लिए कोई ‘घर’. ऊपर से माइन में काम करने वाले मजदूर तमाम बीमारियों के शिकार हुए, जिसमें लंग कैंसर, लीवर कैंसर और सिलिकोसिस जैसी बीमारी थीं. इलाके में अब न तो बेहतर बिजली सप्लाई है और न ही पानी. लोग खुले में शौच करते हैं. माइन्स की वजह से वहां साइनाइड हिल्स बन गए हैं. उससे होकर गुजरने वाली हवा और पानी लोगों की सेहत भी खराब कर रही है.

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