इस बात पर विश्वास नहीं कर पाएंगे लेकिन सच यही है। यूपी के वाराणसी के महाश्मशान कहे जाने वाले मणिकर्णिका घाट पर ऐसा होता है और बीते 350 से भी ज्यादा सालों से ये प्रथा लगातार चलती चली आ रही है
बाबा मसाननाथ के 3 दिवसीय वार्षिक श्रंगार के आखिरी दिन होने वाले इस डांस में आस-पास के जिलों की भी नर्तिकाएं और नगरवधुएं शामिल होती हैं। हैरानी की बात तो ये है कि इस नृत्य के कार्यक्रम के दौरान भी श्मशान पर शवों के आने का सिलसिला जारी रहता है। शवों की अंतिम क्रिया के दौरान म्यूजिक सिस्टम के साथ नर्तिकाएं और नगरवधुएं थिरकती रहती हैं।
शवों की अंतिम क्रिया जैसे गंभीर माहौल में नृत्य करने की इस बेमेल प्रथा के पीछे बहुत गहरी वजह है। दरअसल ऐसी मान्यता है कि जलते शवों के सामने नृत्य करने से इन नर्तिकाओं और नगरवधुओं को इस नारकीय जीवन से छुटकारा मिल जाता है और उनका अगला जन्म सुधर जाता है। नर्तिकियों का ये भी मानना है कि वे बाबा मसाननाथ से डांस करते हुए जब प्रार्थना करती है तो उन्हें सच में इस नरक से मुक्ति मिल जाती है और उनका अगला जन्म संवर जाता है।
इस परंपरा की शुरुआत 17वीं शताब्दी के आस-पास हुई मानी जाती है। दरअसल काशी के राजा मानसिंह ने बाबा मसाननाथ का मंदिर बनवाया था। मानसिंह चाहते थे कि इस मंदिर में संगीत का कार्यक्रम हो, लेकिन जलती चिताओं के सामने कोई नृत्य करने को तैयार ना हुआ और फिर केवल नगरवधुएं ही इस कार्यक्रम में आकर नाचीं। तब से लेकर आज तक ये परंपरा चली आ रही है